लुधिआना, १८ अगस्त २०१८
१८ अगस्त को लुधिआना में आयोजित एक संगोष्ठी में, मुस्लिम, हिन्दू, ईसाई तथा सिक्ख भाईचारे के प्रतिनिधि व्यक्ति, मानवाधिकार एवं जमीनी स्तर पर जुड़े कार्यकर्ता, विद्वान तथा किसानों ने, “एकता, शान्ति एवं न्याय” को मजबूत करने के प्रयास की शुरुआत की । इस संगोष्ठी का आयोजन सचु खोज अकादमी द्वारा करवाया गया । “एकता में ताकत, बटवारे में गिरावट” के लक्ष्य को समर्पित यह आयोजन, सांप्रदायिकता से ऊपर उठके, एक जैसी सोच वाले सारे लोगों को जोड़ता हुआ, जीवन के हर क्षेत्र में एकता, शांति तथा न्याय को मजबूत करने की जागरूकता कराने का प्रयास है । यह संगोष्ठी, विश्व शान्ति के वर्तमान प्रयासों, खासकर संयुक्त राष्ट्र के एजेंडा २०३० के अंतर्गत “सतत विकास के लक्ष्य” को प्राप्त करने की और एक महत्वपूर्ण कदम है । संयुक्त राष्ट्र संघ के इस एजेंडे में १९३ देश शामिल हैं । “सतत विकास” पर केंद्रित इस एजेंडे का मुख्य लक्ष्य है – “कोई भी पीछे ना रहे” । इसलिए यह उन सारे प्रयासों का खुले दिल से स्वागत करता है जो इन पांच “प” बिन्दुओं का ध्यान रखें – प्लैनेट(पृथ्वी), पीपुल(लोग), प्रॉस्पेरिटी (समृद्धि), पीस (शांति) तथा पार्टनरशिप (साझेदारी) ।
“एकता, शान्ति एवं न्याय की मजबूती” के लिए प्रयास, धर्म सिंह निहंग सिंह, संस्थापक सचु खोज अकादमी, की लगातार चल रही बातचीत की लड़ी का एक हिस्सा है, जिसमें कई प्रमुख व्यक्ति जैसे की स्वामी अग्निवेश(समाज सेवक एवं वैकल्पिक नोबेल पुरूस्कार विजेता, नई दिल्ली), महमूद पराचा (वकील उच्चतम न्यायालय नई दिल्ली एवं अध्यक्ष अंतर्राष्ट्रीय अलपसंख्यक वकील आयोग, दक्षिण एशिया), मौलाना मुहम्मद अज़ाज़ुर रहमान शाहीन क़ासमी(महासचिव विश्व शांति संस्था, नई दिल्ली), प्रो डा रोनकी राम(राजनीति विज्ञान विभाग, पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़) और राजविंदर सिंह बैंस( वरिष्ठ मानवाधिकार वकील, पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायलय, चंडीगढ़) शामिल हैं ।
धर्म सिंह निहंग सिंह, संस्थापाक सचु खोज अकादमी: “हमारा सफर धार्मिक अंतर्दृष्टि के केंद्र से शुरू होता है – एक परमेसर – एक धर्म – एक मानव परिवार । पिछले कई दशकों से भारत तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चलाये जा रहे संवाद से, हमें यह स्पष्ट हो गया है कि मानव परिवार तथा धरती माता की संभाल करने वाले सारे व्यक्तियों के विचार एक जैसे ही हैं – यह सारे सचु धर्म के मानने वाले हैं । सचु धर्म, सांप्रदायिक बंदिशों से परे है तथा बिना किसी भेदभाव के, सब को आपस में जोड़ता, प्यार फैलाता, न्याय, मानवाधिकार तथा कुदरती संसाधनों की सुरक्षा करता हुआ, शांति एवं न्याय को मजबूती प्रदान करता है । सत्य धर्म हमारी और हमारे समाज के अंदर फैली बुराइओं का डटकर मुकाबला करता है । सचु धर्म के अनुसार जीवन व्यतीत करने वाले लोग संसारी प्रभुता की इच्छा नहीं करते और अपने राजनितिक तथा कारोबारी हितों के लिए धर्म का दुरूपयोग नहीं करते । सच्चे धार्मिक लोग, राजनेताओं का मार्ग दर्शन सच्चे ज्ञान से करते हैं और ऐसा करके वह एक न्यायसंगत एवं दूरर्दर्शिता का सुशासन सुनिश्चित करने में सहायक होते हैं । हमने यह महसूस किया है कि जो लोग सचु धर्म के जीवन की नैतिक अंतर्दृष्टि को समर्पित हैं, उन्हें एकजुट होकर इस संदेश को संसार तक पहुंचाने के लिए कंधे से कन्धा जोड़कर प्रयासरत होना चाहिए । इसलिए हम सारे लोगों को, आपसी धड़ेबंदी से ऊपर उठकर, अच्छाई तथा एकता के साथ जुड़ने का न्यौता देते हैं ताकि संयुक्त राष्ट्र के “सतत विकास” के लक्ष्य को प्रपात करने के लिए योगदान दिया जा सके ।“
Trailer “Strengthening Unity, Peace & Justice”
स्वामी अग्निवेश, समाजसेवी एवं विकल्पक नोबेल पुरुस्कार विजेता: “हम एक ऐसा समाज सर्जन करने के लिए प्रयासरत हैं, जहां मजदूर, किसान, मर्द, औरत, बच्चे तथा बुर्जुर्ग, सारे संसार में शांति एवं गरिमा के साथ रह सकें । विश्व में हो रहे मानवाधिकार उललंघन, आतंकवाद, हिंसा, अन्याय, भ्रष्टाचार, शोषण एवं सांप्रदायिकता के लिए धर्म के दुरुपयोग की पृष्ठभूमि में प्रेम, न्याय तथा एकता का सन्देश, पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है ।“
डा. एम डी थामस, निर्देशक, इंस्टीच्युट आफ हार्मोनी एंड पीस स्टडीज़, नई दिल्ली: “एकता, न्याय तथा शान्ति, एक स्वस्थ एवं समरस समाज के तीन स्तम्भ हैं । एकता को बढ़ावा देने का अर्थ है कि किसी व्यक्ति या समूह के ऊपर, सीधे या परोक्ष रूप से जबरदस्ती थोपी जा रही एक जैसी सांस्कृतिक जीवन शैली का डट के विरोध किया जाए । न्याय इस बात की पुरजोर मांग करता है कि धर्मनिरपेक्षता के संवैधानिक मूल्यों को, अल्पसंख्कों की सुरक्षा करते हुए, संविधान को समान रूप से लागू किया जाये । इस तरह की विधिपूर्वक दृढ़ता यह सुनिश्चित करेगी की हर मनुष्य और समुदाय, चाहे छोटा हो जा बड़ा, अपनी आज़ादी तथा अधिकारों का इस्तेमाल कर सकता है । शान्ति की बहाली का एक ही तरीका है कि हर प्रकार के भेदभाव और बटवारे के खिलाफ लगातार संघर्ष चलाया जाए । इसके साथ शान्ति की बहाली की मुख्य शर्त यह है कि हमें भारत एवं विश्व के सारे धर्मों में, ऊंची तथा पवित्र मति वाले लोगों के साथ मिलकर, खुद एकता तथा न्याय का झंडाबरदार बनना पड़ेगा । केवल सामाजिक एकता तथा न्याय ही हमारे भारतवर्ष को असली राष्ट्र का दर्जा दिला सकते हैं । एकता एवं ईमानदारी ही सतत विकास और सरबत का भला सुनिश्चित कर सकते हैं ।
महमूद पराचा, वकील उच्चतम न्यायालय एवं अध्यक्ष अंतर्राष्ट्रीय अलपसंख्यक वकील आयोग, दक्षिण एशिया: “हर व्यक्ति इस विश्व का नागरिक है । इसलिए चाहे वह भारतवासी हों या किसी अन्य राष्ट्र के वासी, धरती माँ द्वारा उपहार स्वरूप प्राप्त सन्साधनों के बराबर के साझेदार हैं । क्योंकि मानव ही एक ऐसी प्रजाति है जिसके अंदर वातावरण तथा सामाजिक संरचना को बनाने तथा आकार देने कि क्षमता है । ऐसे में यह हमारा ख़ास उत्तरदाईत्व बन जाता है, कि हम कुदरती संसाधनों का इस्तेमाल एवं सुरक्षा इस प्रकार से करें, ताकि जिन जीव जंतुओं का जीवन इन संसाधनों पर आधारित है, वह शान्तिप्रिय तरीके से साथ साथ रह सकें । इसलिए हम अपने कर्तव्य को रोजाना याद रखते हुए, सच्चे ज्ञान से प्राप्त मार्ग दर्शन को, कुदरत से मिले उपहारों के संरक्ष्ण के लिए उपयोग करें ।“
मौलाना महमूद अज़ाज़ुर रहमान शाहीन क़ासमी, महासचिव विश्व शांति संस्था, नई दिल्ली: “धर्म का लक्ष्य एकता है और जो लोग एकता के लिए कार्य कर रहे हैं, उनके बीच आपसी सहयोग की अधिक अनिवार्य है । आम देखने में आता है कि हम कई प्रकार से बंटे हुए हैं । जानकारी के अभाव में अक्सर, धर्म के बारे में गलतफहमी पैदा हो जाती है और इससे भी ज्यादा धर्म का दुरूपयोग नफरत और हिंसा करने की लिए किया जाता है । समय की पुरज़ोर मांग है की हम सब एकत्र होकर, हर प्रकार के सामाजिक अन्याय एवं धर्म के दुरुपयोग के खिलाफ आवाज़ बुलंद करें । अगर हम परमेसर के हुक्म में चलेंगे तो एकता एवं शांति अपने आप बहाल हो जाएगी ।“
प्रो डा रोनकी राम, राजनीति विज्ञान विभाग, पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़: “शांति एवं न्याय के सवाल का गहरा संबंध, ज़मीनी स्तर पर लोगों के सशक्तिकरण से संबंधित है ताकि वोह अपनी प्रतिभा का पूरा लाभ उठा सकें । हुनर के होते हुए भी, सम्भावना तथा वास्तविकता के बीच की खाई, सामाजिक अन्याय तथा ग़ैर बराबरी को बेपर्दा करती है । इस मौके पर धर्म एक सकारात्मक भूमिका निभा सकता है, परन्तु अक्सर देखने में आता है कि धर्म एवं धार्मिक संस्थाओं पर ऐसे लोग हावी हो जाते हैं, जो अपने निजी तथा राजनीतिक फायदे के लिए धर्म का इस्तेमाल झगड़े एवं सांप्रदायिक हिंसा फ़ैलाने के लिए करते हैं । इसलिए न्याय एवं शांति स्थापित करने वाले, एक ऐसे दृष्टिकोण की सर्वाधिक आवश्यकता है, जहां एक ऐसा आधारभूत ढांचा उप्लब्ध कराया जा सके, जिसमें सब लोग एक दूसरे को अनदेखा किये बिना, अपनी प्रतिभाओं का परस्पर लाभ लें सके ।“
राजविंदर सिंह बैंस, वरिषठ मानवाधिकार वकील, पंजाब एवं हरिआणा उच्च न्यायलय,चंडीगढ़: “एक ऐसे न्यायसंगत समाज का सृजन, जो शान्ति से भरपूर हो तथा जहां हर बच्चा अपनी प्रतिभा की बुलंदियों को छू सके, एक ऐसे सामाजिक ढांचे को स्थापित करने की आवश्यकता है, जहां किसी के साथ भेदभाव ना हो । जहां हर किसी को रहने की लिए साफ़-सुथरे एवं सुरक्षित घर, मुफ्त या किफायती पढाई और सेहत बीमा उप्लब्ध हो । इसे प्राप्त करने के लिए हमे सचु धर्म के मार्ग दर्शन की आवश्यकता है ।”
पृष्ठभूमि
सचु खोज अकादमी, एक गैर सरकारी संस्था है, जो गुरमति ज्ञान की रौशनी में सिक्खी के बारे में मौलिक जानकारी देने के साथ साथ पूरे संसार में एकता, शांति, मानवाधिकार, न्याय तथा कुदरती संसाधनो की सुरक्षा करने के लिए धर्म की जिम्मेवारी तथा झंडा बरदारी से अवगत कराने के लिए वचनबद्ध है । धर्म सिंह निहंग सिंह , सचु खोज अकादमी के संस्थापक हैं तथा उनके द्वारा की गयी हजारों घंटों की गुरबाणी व्याख्या, यू ट्यूब पर प्रसारित की गयी है और आज भी सुनी जा सकती है । वह “धर्म ज़रूरी है – भविष्य की चुनोतियों पर पुनर्विचार” के पहले एवं मुख्य वक्ता थे । यह संगोष्ठी जर्मनी की फैडरल मिनिस्ट्री फॉर इकोनोमिक डीवेल्पमेंट( बी एम ज़ैड ) द्वारा आयोजित की गई थी । साल २०१६ में, धर्म सिंह निहंग सिंह “वाइसिस फ्राम रिलीजन ऑन सस्टेनेबल डीवेलेपमेंट” शीर्षक के तहत छपी किताब के लेखकों में से एक थे । यह किताब २०१६ की गर्मिओं में, संयुक्त राष्ट्र की सतत विकास तथा धर्म के संबंध के बारे में, की गयी सलाह बैठकों का नतीजा था ।
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