हमारे बारे में: सचखोज अकेडमी – सच की खोज के लिए बनाई गई अकेडमी
गुर की सेवा शबदु वीचारु।। (आदि ग्रंथ, म-१, २३३)
धरम सिंघ निहंग सिंघ जी का जन्म वर्ष १९३६ में पंजाब, भारत में हुआ तथा वे धार्मिक ज्ञान की रक्षा ले लिए वचनबद्ध, निहंग जत्थेबंदी से सम्बंध रखते हैं। यह सचखोज अकेडमी के मुखिया हैं, जो कि गुरबाणी पर आधारित खोज को समर्पित है। इन्होंने आध्यात्मिकता, धर्म तथा अस्तित्व सम्बंधी मुद्दों पर प्रचण्ड और अलोचनात्मक व्याख्या की है, जैसे कि मनुष्य जीवन का मकसद क्या है, आत्मा, धर्म, और हमारे सामूहिक भविष्य का रूप क्या है, अच्छा विकास क्या है, आतंकवाद, भ्र्स्टाचार, वातावरण में फैले प्रदूषण को कैसे रोका जा सके इत्यादि। परम्परा अनुसार निहंग अपने ज्ञान का प्रसार निशुल्क में करते हैं। धरम सिंघ निहंग सिंघ जी की हजारों घंटो की व्याख्या यू-ट्यूब पर उपलब्ध है तथा इन्होंने विभिन्न विषयों पर कई पुस्तकें और लेख भी लिखें हैं।|
निहंग सिंघ फरवरी २०१५ में, “धर्म जरूरी है – भविष्य की चुनौतियों पर पुनर्विचार” नामक संवाद श्रृंखला के पहले वक्ता थे। यह संवाद श्रृंखला, जो कि जर्मनी की आर्थिक सहकारिता और विकास के लिए बनी केंद्रीय संस्था द्वारा आयोजित की गई थी, में प्रमुख सख्शियतों को संस्कारों, धर्म, और विकास जैसे मुद्दों पर अपने विचार व्यक्त करने के लिए आमन्त्रित किया जाता है।
धर्म जरुरी है – भविष्य की चुनौतिओं परपुनर्विचार
आध्यात्मिक सूझ -बूझ के बिना सफल विकास कर पाना असम्भव है । अच्छा विकास एक अच्छी दवा के जैसा होता है, जिसका कोई दुष-प्रभाव नहीं होता ।
धरम सिंघ निहंग सिंघ
ईमानदारी: हमारी कथनी और करनी में फरक नहीं होना चाहिए। ईमानदारी और शुद्ध हिर्दय के बिना शांति, न्याय, एक-जुटता और बेहतर प्रशासन नहीं हो सकता।
समुचता: सच धर्म सभी के लिए होता है और इसका स्वरूप निस्वार्थ भाव वाला होता है। यह किसी खास धड़े (समूह) या हित को मुख्य रखने की बजाय, समूची दुनिया के लोगों के भले के लिए प्रतिबद्ध है।
संवाद: धर्म की सूझ-बूझ दुनिया के साथ सांझी करनी होती है। धार्मिक होने के नाते, हमें अपने विचार स्पष्ट या अस्पष्ट तौर पर दुनिया के ऊपर थोपने नहीं चाहिए।
विकास: असल विकास सहजता और अपने आप को इस धरती पर मेहमान समझने जैसी निम्रता के साथ ही हासिल किया किया जा सकता है। इसमें बुनयादी जरूरतों की चेतनता होती है, कुदरत के साथ सुर मिलाने की समझ और अपनी तथा धरती की सिमित योग्यताओं का ध्यान होता है। वह विकास, जो उलझने, समस्याएँ पैदा करे और अंदरूनी शांति को भंग करे, वह पिछड़ा होता है।
शांति: बहुत तेजी से धड़कने वाला दिल उतना ही खतरनाक होता है जितना कि धीमी गती से धड़कने वाला। दिल की बहुत तेज गती की धड़कन की तरह अंधाधुंद रफ़्तार से किया जाने वाला विकास, शांति की बजाय अशांति पैदा करता है। कुदरती विकास सीढ़ी-दर-सीढ़ी हासिल किया जाता है। यह विकास कुदरत की चाल से शिक्षा लेकर किया जाना चाहिए।
जिम्मेवारी: भूल (गलती) किसी से भी हो सकती है, बेशक वे लोग हों या देश। इसका इलाज यही है कि आगे से गलती ना की जाये तथा पहले से हो चुकी गलतियो को सुधारने की जिम्मेवारी ली जाये।
ताकत के इस्तेमाल में सावधानी: जिनके पास राजसी, विद्यक, या दौलत की ताकत है, उनकी यह जिम्मेवारी भी बनती है कि इन तीनो किस्म की ताकतों का दुरूपयोग ना हो।
जिम्मेवार सियासत: नीति बनाने वालो को दूर-दर्शी नीतियां बनाने के लिए धार्मिक सूझ-बुझ वालों की सलाह लेनी चाहिए तथा शैक्षणिक संस्थानों में सच धर्म सम्बन्धी जागरूकता बढ़ाने के उपाय करने चाहिए, साथ ही, नीति बनाने वालों की तरफ से भी धार्मिक प्रचार के ऊपर आलोचनात्मक नजर रखी जानी चाहिए ताकि धर्म के नाम पर झग़डा पैदा करने वालों को रोका और टोका जा सके।
प्रतियोगिता: नीतिवानो और समाज को अलग अलग मतों की आपसी प्रतियोगिता को उत्साहित करना चाहिए। अगर धार्मिक मुद्दे पारदर्शिता के साथ पेश किये जायें तो यह आसानी से तय किया जा सकता है कि किस मत का कौन सा दृष्टिकोण सही तथा मानवता के भले के लिए है, जिसका कि व्यापक प्रचार किया जाना चाहिए।
परिवर्तन: सच्चा परिवर्तन हमेशा व्यक्तिगत स्तर पर शुरू होता है। सच धर्म इसमें सहायक हो सकता है। सच धर्म की मूल प्रकीर्ति ही हमारे तथा समाज के भीतर से स्वार्थ और तंग-द्रिष्टि को खत्म करने की है। इसलिए जरुरत है प्राचीन मनोवृतियों को एक तरफ रखने की। जो लोग धार्मिक कहलवाते हैं, उनकी जिम्मेवारी है कि वो अपने धर्म और इतिहास को निष्पक्ष होकर स्वव्लोचना तथा विचार सहित पढ़ें और समझें।
कुदरत की संभाल: वातावरण में आ रहे प्रदूषण का कारण दरअसल हमारे द्वारा अपनी अंतरात्मा से मुंह मोड़ लेना है। अगर हम अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनेंगे तो यकीनन हमारा आपस में तथा कुदरत के साथ रिश्ता बेहतरीन होगा।
एकता: आध्यामिकता लोगो में नजदीकियां पैदा करती है तथा आध्यामिकता की पहचान आत्मज्ञानियों को ही हो सकती है। आत्मदर्शी ही प्रेम में भीगा हो सकता है जो हर आत्मा के प्रति प्रेम रखता है। प्रेम के बिना एकता नहीं हो सकती। जर्मन देश की एकता दरअसल एक आत्मिक प्रेम का ही नतीजा था, जिसने दो अलग हुए मुल्कों को फिर से एक ही नहीं बनाया बल्कि धर्म पर आधारित विकास करवाने का हौसला भी प्रदान किया।
धरम सिंघ निहंग सिंघ जी के नजरिये से:
आज दुनिया को एक ऐसी स्वतंत्र संस्था की जरुरत है, जिसमे दुनिया भर की सभी मतों की गहन जानकारी रखने वाले माहिर और नुमाइंदे मिलजुल कर गुणों और सदभावना के बुनियादी उसूलों पर एक राय कायम कर सकें। यह संस्था बहु-गिनती वाली चुनाव प्रक्रिया की बजाय गुणों के आधार पर स्थापित हो। इस संस्था की राय सभी सरकारों पर लागू होनी चाहिए, जिससे कि वह सब मानवता के समक्ष आई समस्याओं का समाधान कर सकें। इस संस्था की यह भी जिम्मेवारी होनी चाहिए कि सबको गलत सियासी तथा सामाजिक कुरीतियों के बारे में जानकारी करवाए तथा टकराव की स्थिति में मध्यस्थ की भूमिका निभाए।
सिक्ख-मत
सोलहवीं शताब्दी के दौरान उत्तरी भारत में सिक्ख-मत (सिक्खी) ने एक विलक्षण धर्म का रूप धारण किया। आज की तारीख में, तक़रीबन अढ़ाई करोड़ लोग अपने आप को सिक्ख मानते हैं। यह धर्म, ३६ बुद्धिमानो द्वारा प्रगट किये किये गए आत्मिक ज्ञान, जिसको कि काव्यशैली के लिखित रूप (गुरबाणी) में प्रचारित किया गया है, पर आधारित है। यह मत लोगों में एकता बढ़ाने तथा कुदरत के साथ तालमेल बनाकर, उस अनाम करतार के इच्छा (हुकुम) में गुणमयी और नम्रता पूर्वक जिंदगी जीने की प्रेरणा देता है। सिक्ख मत दर्शाता है कि इंसान कैसे अपनी आत्मिक पवित्रता अथवा आत्म-बोध द्वारा परंपरागत प्रचलित धारणाओं को त्याग कर ऊँचा उठ सकता है।